हिड़मा की मौत के बाद बस्तर में माओवादियों के आत्मसमर्पण की रफ्तार तेज हो गई है। पिछले 10 दिनों में कुल 161 माओवादी हथियार छोड़कर मुख्यधारा में शामिल हुए हैं। वहीं एमएमसी जोन ने 1 जनवरी 2026 को सामूहिक आत्मसमर्पण की घोषणा कर दी है, जो माओवादी संगठन में तेजी से बढ़ती फूट और अंतर्कलह को दिखाता है।
बस्तर में तेजी से बदल रहा माहौल
जगदलपुर से मिली जानकारी के अनुसार, बस्तर क्षेत्र में माओवादी हिंसा के चार दशक पुराने इतिहास में पहली बार हालात इतनी तेजी से बदलते दिख रहे हैं। दंडकारण्य के सबसे कुख्यात और प्रभावशाली कमांडर हिड़मा की मुठभेड़ में मौत, और इसके तुरंत बाद शीर्ष नेताओं भूपति व रूपेश के आत्मसमर्पण ने माओवादी नेटवर्क को हिला दिया है।
इन्हीं घटनाओं का परिणाम है कि सुकमा, बीजापुर, नारायणपुर और तेलंगाना सीमा क्षेत्र में 3 करोड़ से अधिक इनामी राशि वाले 161 माओवादियों ने हथियार डाल दिए हैं। सुरक्षा एजेंसियों ने इसे बस्तर में उभरती ‘आत्मसमर्पण की सुनामी’ करार दिया है।
MMC जोन का बड़ा ऐलान: 1 जनवरी 2026 को सामूहिक सरेंडर
तेजी से बदलते हालात के बीच महाराष्ट्र–मध्यप्रदेश–छत्तीसगढ़ (MMC) स्पेशल जोनल कमेटी के प्रवक्ता ‘अनंत’ ने पत्र और ऑडियो संदेश के ज़रिए 1 जनवरी 2026 को बड़े पैमाने पर सामूहिक आत्मसमर्पण की घोषणा की है।
संदेश में कैडरों को कहा गया है कि—
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किसी भी अभियान में शामिल न हों
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रोजाना 435.715 फ्रीक्वेंसी पर संपर्क बनाए रखें
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राज्यों से 1 जनवरी तक अभियान रोकने की मांग
यह बयान स्पष्ट करता है कि विचारधारात्मक सम्मोहन टूट चुका है और नेतृत्व संकट संगठन को भीतर से खोखला कर चुका है।
आंतरिक टूटन और नेतृत्व संकट
माओवादी मामलों के विशेषज्ञ पत्रकार विकास तिवारी के अनुसार, बसवराजू और हिड़मा की मौत के बाद संगठन में नेतृत्व शून्य हो गया है। इससे कैडरों का मनोबल टूट चुका है और वे तेजी से मुख्यधारा की ओर लौट रहे हैं।
65 लाख इनामी 10 माओवादी हुए सरेंडर
आत्मसमर्पण की इस लहर के बीच बुधवार को 25 लाख के इनामी चैतू उर्फ श्याम दादा ने नौ साथियों के साथ सरेंडर किया। कुल 65 लाख के इनामी ये 10 माओवादी शौर्य भवन में अधिकारियों और आदिवासी प्रतिनिधियों की उपस्थिति में पुलिस के सामने हथियार छोड़कर संविधान की प्रति थामते नजर आए।
इनमें—
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8 लाख इनामी सरोज
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5 लाख के एसीएम भूपेश, प्रकाश, कमलेश, जन्नी, संतोष, रामशीला
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1 लाख के नवीन, जयंती
शामिल रहे।
63 वर्षीय चैतू 1985 से सक्रिय था और झीरम घाटी हमले में उसकी प्रमुख भूमिका मानी जाती थी। उसका समर्पण माओवादी ढांचे के लिए बड़ा झटका है।
“हथियारों से अब कुछ नहीं” — समर्पित माओवादियों की भावनाएँ
सरेंडर करते समय चैतू ने कहा कि भूपति और रूपेश का मुख्यधारा में लौटना उनके लिए प्रेरणा बना। “अब बंदूक की लड़ाई का समय नहीं रहा,”—यह कहते हुए उसने हिंसा छोड़ने की बात स्वीकारी।
सुरक्षा बलों का बयान: बस्तर में नए दौर की शुरुआत
बस्तर रेंज के आईजी सुंदरराज पी. ने कहा कि माओवादी संगठन का प्रभाव तेज़ी से घट रहा है और क्षेत्र में शांति व विकास का नया अध्याय शुरू हो चुका है।
उन्होंने पोलित ब्यूरो सदस्य देवजी, सीसी सदस्य रामदर, और डीकेएसजेडसी सदस्य पापाराव से भी आत्मसमर्पण करने की अपील की।







